प्रारंभिक स्थिति :
पेट के बल लेटें।

ध्यान दें :
विशुद्धि चक्र पर।

श्वास :
शारीरिक क्रिया के साथ समन्वित, मुद्रा में सामान्य श्वास।

दोहराना :
1-2 बार।

अभ्यास :
पीठ के बल लेट जायें। > पूरक करते हुए टांगों (सीधी या मुड़ी), नितम्ब और धड़ को फर्श से ऊपर उठायें। पीठ को हाथों से सहायता दें। धीरे-धीरे टांगों और पीठ को सीधा करें, जिससे शरीर का पूरा भार गर्दन, कंधों और भुजाओं पर आ जाये। ठोडी छाती को छूती है। पीठ और टांगें खड़ी रेखा में यथा संभव एक सीध में आ जाये। > सामान्य श्वास के साथ इसी मुद्रा में 1 से 5 मिनट तक बने रहें। > रेचक करते हुए टांगों को नीचे लायें, घुटनों को सिर की ओर लायें एवं धीरे-धीरे प्रारम्भिक स्थिति में आ जायें।

लाभ :
यह आसन विशुद्धि चक्र को प्रोत्साहित करता है। शरीर को मद्य प्रतिरोधक करने में सहायता करता है और मन को शान्ति देता है। यह ग्रीवा ग्रन्थि और सभी संबंधित अंगों के कार्यों का नियमन करता है। शरीर की नीचे से ऊपर होती हुई मुद्रा रक्तापूर्ति को बढ़ाती है और इस प्रकार यह आसन शरीर की सभी कोशिकाओं को अधिक कार्यशील बना देता है। यह शिराओं की वापसी सक्रिय करता है और सूजी हुई टांगों के लिए विशेष रूप से अच्छा है।

सावधानी :
यदि टेटुआ (ग्रीवा) अति सक्रिय हो (Hyperactive Thyroid) या उच्च रक्त चाप या ग्रीवा रीढ़ में दर्द हो तो इस आसन को न करें। 14 वर्ष की आयु से छोटे बच्चों को इस आसन की अन्तिम मुद्रा में नहीं रुकना चाहिए।

आसन इन निम्नलिखित श्रेणियों में शामिल किया जाता है:
थायरॉयड ग्रंथि को सक्रिय करने के लिये आसन और व्यायाम
शिराओं के पुनर्भरण हेतु आसन और व्यायाम