"योग आध्यात्मिकता का स्रोत है और आध्यात्मिकता सभी धर्मों का आधार है। योग ईश्वर तक जाने का मार्ग है।"

अब आप योग अभ्यास के चौथे स्तर तक पहुँच गये हैं। इस प्रकार आप अग्रिम योग अध्येता, छात्र बन गये हैं। अब यहाँ से धीरे-धीरे व्यायामों के ध्यानपूर्वक किये गये अभ्यासों पर आपका अधिक ध्यान आवश्यक है। जितनी देर पहले आप जिस किसी स्थिति में रहते थे अब उससे अधिक समय की आवश्यकता है क्योंकि इससे आप शरीर और मन पर आसनों के प्रभाव को अधिक गहराई से अनुभव कर सकेंगे।

इस अभ्यास की गहनता के स्तर के संबंध में प्राय: यह प्रतीत होता है कि कोई प्रगति नहीं हो रही है। अनिश्चितता और निराशा के प्रगटिकरण की भावनाओं पर, भगवान श्री दीपनारायण महाप्रभु जी द्वारा अपने स्वर्णिम उपदेशों में नीचे दिये गये परामर्श से, नियन्त्रण पाया जा सकता है।

“आपके कर्म की सफलता आपकी आन्तरिक इच्छा शक्ति और आत्म-अनुशासन में सन्निहित है। हिम्मत न हारो और कार्य अधूरा न छोड़ो।” और “अभी तक जो कुछ करने का आपने संकल्प किया है, उसे दृढ़ निश्चय के साथ करो। सफलता अवश्य मिलेगी।”

भगवद् गीता (11/40) में कहा है, "इस पथ पर चलने से कोई प्रयास व्यर्थ नहीं जाता, इसमें कोई हानि नहीं है। इस पथ पर एक छोटा सा पग भी व्यक्ति को घोर डर से मुक्त कर देता है।"

सब कुछ, योग पथ पर यहां तक कि छोटे से छोटा प्रयत्न भी हजारों लाभ प्रदान करता है। वे जो इसका त्याग नहीं करते, जो नियमित रूप से अभ्यास करते हैं और पूर्ण विश्वास के साथ जारी रखते हैं वे अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त करते हैं।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥

हे प्रभु, आप मेरे माता और पिता हैं,आप मेरे संबंधी और मित्र हैं।

आप मेरे ज्ञान और मेरा धन हैं,

आप मेरा सब कुछ हैं, हे मेरे प्रभु!